मंगलवार, अक्तूबर 4

जितना खुद को बाँटा जग में

जितना खुद को बाँटा जग में 

 

जितना  ‘मैं’ ‘तुझमें’ रहता है 

उतने से ही मिल पाता है, 

खुद की ही तलाश में हर दिल 

 दूजों  के घर-घर जाता है !

 

जितना खुद को बाँटा जग में 

उतने पर ही होता हक़ है, 

बिन  बिखरे बदली कब बनती 

 इसमें नहीं मेघ  को शक है !

 

प्रियतम प्रेमी मिलने ख़ातिर  

रूप हज़ारों धर लेते हैं,  

खुद को मंदिरों में सजाया 

खुद ही सजदे कर लेते हैं !

 

कोई नहीं सिवाय उसी के 

जिससे तिल भर का नाता है, 

भेद कभी खुल जाए जिसका 

कुदरत  का कण-कण  भाता है !

 

सहज हुआ वह बंजारा फिर 

बस्ती-बस्ती गीत सुनाता , 

मुक्त हो रहो बहो पवन से 

सुख स्वप्नों के  गाँव बसाता !

4 टिप्‍पणियां:

  1. सहज हुआ वह बंजारा फिर

    बस्ती-बस्ती गीत सुनाता ,

    मुक्त हो रहो बहो पवन से

    सुख स्वप्नों के गाँव बसाता !
    .. सुंदर भावाभिव्यक्ति।

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