मंगलवार, दिसंबर 20

तुम किससे भाग रहे हो

    

 


तुम किससे भाग रहे हो 

तुम किससे भाग रहे हो 

और किसकी ओर भाग रहे हो 

सच से भाग रहे हो 

तो अंतत: सच तुम्हें ढूँढ ही लेगा 

मृत्यु से भागता है आदमी 

पर उसके और मृत्यु के मध्य

फ़ासला निरंतर कम होता है 

जरा से भागता है युवा बना रहने को पर उसके 

कदम बुढ़ापे की आहट ही फैलाते हैं 

यश  से भागता हुआ व्यक्ति 

सम्मानित किया जाता है 

अपमान से भयभीत ही शिकार होता है अपमान का 

हम जिससे भी दूर जाएँ 

वह हमें छोड़ता नहीं  

क्योंकि उसका सिरा

हम खुद ही थामे रहते हैं 

परमात्मा से भागता हुआ व्यक्ति 

स्वयं को उसी के द्वार पर पाता है 

नास्तिक ही आस्तिक बन जाता  है 

हर बार, क्योंकि ईश्वर दाएँ भी है बाएँ भी 

आगे और पीछे भी 

ऊपर भी नीचे भी 

असम्भव है उससे बचना 

वह घेरे हुए है अब ओर से !


3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सटीक और सत्य संदर्भ है जीवन का ये।

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  2. हम उससे कितना हीं क्यों ना छिप ले पर वो है तो है । आखिर हमारा अंतिम सहारा भी तो वहीं है ।

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