पथ दिखाता चाँद नभ में
एक ज़रिया है कलम यह
हाथ भी थामे इसे जो,
कौन जो लिखवा रहा है
लिख रहा जो कौन है वो !
भाव बनकर जो उमड़ता
बादलों सा कभी उर में,
लहलहाती है फसल फिर
अक्षरों की तब मनस में !
कभी सूखा मरुथलों सा
ज्यों शब्द भी गुम हो गये,
हाथ में अपने कहाँ कुछ
थाम ली जब डोर उसने !
चाह फिर क्योंकर जगायें
हो रहा जो वही शुभ है,
पथ दिखाता चाँद नभ में
सूर्य उतरा धरा पर है !