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बुधवार, नवंबर 29

पथ दिखाता चाँद नभ में

पथ दिखाता चाँद नभ में 


एक ज़रिया है कलम यह

हाथ भी थामे इसे जो, 

कौन जो लिखवा रहा है 

लिख रहा जो कौन है वो !


भाव बनकर जो उमड़ता 

बादलों सा कभी उर में, 

लहलहाती है फसल फिर 

अक्षरों की तब मनस में !

 

कभी सूखा मरुथलों सा 

ज्यों शब्द भी गुम हो गये,

हाथ में अपने कहाँ कुछ 

थाम ली  जब डोर  उसने !


चाह फिर क्योंकर जगायें 

हो रहा जो वही शुभ है, 

पथ दिखाता चाँद नभ में 

सूर्य  उतरा धरा पर है !


शनिवार, अगस्त 11

अभी समर्थ हैं हाथ



अभी समर्थ हैं हाथ



अभी देख सकती हैं आँखें
चलो झाँके किन्हीं नयनों में
उड़ेल दें भीतर की शीतलता
और नेह पगी नरमाई
सहला दें कोई चुभता जख्म
कर दें आश्वस्त कुछ पलों के लिए ही सही
बहने दें किसी अदृश्य चाहत को
वरदान बनकर !

अभी सुन सकते हैं कान
चलो सुनें बारिश की धुन
और पूर दें
किसी झोंपड़ी का टूटा छप्पर
अनसुना न रह जाये रुदन
किसी बच्चे का
 न ही किसी पीड़ित की पुकार !

अभी समर्थ हैं हाथ
समेट लें सारे दुखों को झोली में
और बहा दें
तरोताजा होकर संवारें किसी के उलझे बाल
उदास मुखड़े और उड़े चेहरे से पूछें दिल का हाल !

अभी श्वासें बची हैं
जिसने दी हैं उसका कुछ कर्ज उतार दें
थोड़ा सा ही सही
उसकी दुनिया को प्यार दें !