मंगलवार, जनवरी 30

जल

जल 

हम छोटे-छोटे पोखर हैं 

धीरे-धीरे सूख जाएगा जल 

भयभीत हैं यह सोचकर 

सागर दूर है 

पर भूल जाते हैं 

सागर ही 

बादल बनकर बरसेगा 

भर जाएँगे पुन:

हम शीतल जल से

नदिया बन जल ही 

दौड़ता जाता है  

सागर की बाहों में चैन पाता है ! 


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