मंगलवार, नवंबर 19

कोई

कोई 


कोई निकट ही नहीं 

बहुत निकट है 

पल-पल देख रहा है

देह की हर शिरा का स्पंदन 

प्राणों का आलोड़न 

मन का सहज आनंद 

झट ‘तथास्तु’ कह कर मुस्का देता है 

और वही देख चुका है 

देह की जड़ता 

प्राणों की आतुरता 

मन का रुदन 

पर तब हामी नहीं भरी थी  

प्रकाश की आस जगायी थी 

सहलाया था अदृश्य हाथों से 

घोर अंधेरों में !



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