शुक्रवार, नवंबर 15

प्यास

प्यास 


सब कुछ बेमानी लगता है जब 

कुछ भी समझ नहीं आता 

क्या करना है 

क्यों करना है 

कोई जवाब मन नहीं पाता 

रोज़मर्रा के काम जब अर्थहीन लगते हैं 

कुछ नया है 

पर पकड़ में नहीं आता है 

एक सवाल सा मन में सदा बना रहता है 

जवाब कोई देता हुआ सा नहीं लगता 

एक मौन घेर लेता है जब तब 

चुपचाप बैठ कर उसे सुनने का मन होता है 

शायद उस मौन से ही कोई जवाब आएगा 

बाहर तो कुछ भी आकर्षित नहीं करता 

किसी और लोक में बसता है शायद वह 

जो भीतर ऐसी प्यास भरता है 


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