एक वही तो डोल रहा है
गा-गा कर थक गये सयाने
बुद्धि से तेज गति है जिसकी,
जीवन एक सुगंध की खानि
कानों में आ बोल रहा है !
स्थूल-सूक्ष्म दोनों के पीछे
लघु-अनंत दोनों का कारण,
चक्षुओं से अदृश्य हुआ जो
एक वही तो डोल रहा है !
अपनी महिमा में ठहरा है
महासागरों से गहरा है,
अपनी महिमा ख़ुद ही जाने
रस कण-कण में घोल रहा है !
वही हुआ मैं, वही हुए तुम
धरती, अंबर, अगन, अनिल भी,
जल जब चंचल गति से दौड़े
राज स्वयं ही खोल रहा है !
सुन्दर
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