मुक्ति और पीड़ा
नहीं है ज्ञात, कुछ भी
अज्ञात बहुत भारी है
सृष्टि चला रहा है कौन
किसने की प्रलय की तैयारी है?
कौन पीड़ा के बीज बोता
कौन अहंकार जगाता
कौन करता मुक्ति की आकांक्षा
कौन ठगा से देखता रहा जाता!
हर दर्द एक पुकार ही तो है
जो समाधान के लिए उठी है
हर दुख एक द्वार ही तो है
जो मुक्ति की ओर ले जाने आया है !
वह कोई भी हो
सदा साथ-साथ चलता है
जिसकी आँखों में
ब्रह्मांड का स्वप्न पलता है !
सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंवो जो भी है
जवाब देंहटाएंहम उसी की मर्जी की कठपुतलियां हैं:)
गहन भाव लिए सुंदर अभिव्यक्ति।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ अक्टूबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार श्वेता जी!
हटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
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