गुरुवार, अक्टूबर 30

वही थाम लेता राहों में

वही थाम लेता राहों में 


कोई लिखवा जाता है ज्यों 

जहाँ कलम, कागज सम्मुख है, 

अक्षर भरते से जाते हैं 

मौन सदा, जो जगत प्रमुख है !


वही शब्द है वही अर्थ भी 

वही गीत प्राणों में भरता, 

वही श्वास बन आता जाता 

वही स्वयं से जोड़े रखता !


जिसके होने से ही हम हैं 

एक पुलक बन तन में दौड़े, 

वही थाम लेता राहों में 

व्यर्थ कहीं जब मन यह दौड़े ! 


 होकर भी ना होना जाने 

उसके ही हैं हम दीवाने, 

 जिसे भुला के जग रोता है 

याद करें हम लिखें तराने !


जो भी उसकी याद दिलाये 

वही गुरू सम पूजा जाये, 

सपनों की अब कौन सुने? जब 

नींदों को ही हर ले जाये !


20 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
    सादर‌।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार 31 अक्टूबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।
    देर से सूचित करने के लिए क्षमा चाहते हैं।

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  2. सपनों की अब कौन सुने? जब

    नींदों को ही हर ले जाये !...... वाह! बहुत सुंदर।

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  3. बहुत खूब ... सपने खुद को ही याद कहाँ रखते हैं ...

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  4. आपने जिस तरह उस अनकहे एहसास को पकड़ा है, वो सच में बड़ा अपना लगता है। यहाँ शब्द सिर्फ शब्द नहीं हैं, ये जैसे किसी गहरे रिश्ते का दरवाज़ा खोलते हैं। मैं उस “वही” की खोज में खुद को बार-बार पाता हूँ, जिसे हम हमेशा महसूस करते हैं पर नाम नहीं दे पाते।

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    1. वही को खोजना शायद वास्तविक ख़ुद को खोजने जैसा है, अपने आप से जो रिश्ता हो उसे भला क्या नाम दिया जाये, पर वह जो ख़ुद है वह अभी वाला ख़ुद नहीं, यह तो मिट जाता है, शायद यही विरोधाभास इसे रहस्य बनाता है

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