आगम लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
आगम लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, अक्टूबर 31

अगम, अगोचर बहे सदा ही

अगम, अगोचर बहे सदा ही

सुर-संगीत की तरणि बहती

है अजस्र वह धार परम की,

निशदिन कोई यज्ञ चल रहा

अगम, अगोचर बहे सदा ही !

 

भीगे, डूबे, उतराए उर

पोर-पोर हो सिक्त देह का,

सुन सकते तो धरो कान अब

स्वाद चखो फिर मुक्त नेह का !

 

चुक जाती वह धार नहीं यह

इक अखंड. अनंत सलिला है,

युगों-युगों से तट पर जिसके

करुणा प्रीत बही अनिला है !

 

इसी घाट पर गोपी थिरकी

वंशी की भी तान छिड़ी थी,

स्वीकृत राम की शक्ति पूजा

समाधि अंतिम यहीं घटी थी !

 

गोदावरी, नर्मदा, यमुना

नाम भिन्न पर घाट वही है,

लक्ष्य एक एक ही स्रोत है

हर राही का बाट यही है !