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मंगलवार, सितंबर 5

रिश्ता इक अद्भुत बन जाता




रिश्ता इक अद्भुत बन जाता


शिक्षा, शिक्षण तथा प्रशिक्षक 

मानवता के पावन रक्षक, 

कोरे मन पर लिखें इबारत 

बन जाते हैं वही परीक्षक !


​​समुचित सम्मति देते शिक्षक 

सही-ग़लत का भेद बताते, 

लक्ष्य प्राप्त कर लें जीवन का 

विद्यार्थियों  को पथ सुझाते !


श्रेष्ठता का वरण करें सदा 

माध्यम  भी नैतिक  अपनायें, 

गुण-कमियों का करे आकलन 

शिष्य का मस्तिष्क पढ़ पाये !


मन में करुणा और दया भर 

सदा छात्र पर प्रेम लुटाये,  

जो शिक्षा का मोल न समझे

उसे भी धैर्य से समझाये !


आजीविका के योग्य बनाते 

भाषा वाणी शुद्ध बनाते, 

शिक्षक दिल में रह बच्चों के 

जीवन का मर्म समझाते !


उपलब्धि पर सदा शिष्यों की 

गर्व सदा शिक्षक को होता 

छात्र उन्हें आदर्श मानते 

रिश्ता इक अद्भुत बन जाता !



गुरुवार, सितंबर 4

शिक्षक दिवस पर शुभकामनायें

यह कविता सभी शिक्षकों को समर्पित है 


शिक्षक दिवस पर शुभकामनायें

ज्ञान की मशाल तुम
राह रोशन करो,
त्याग की मिसाल तुम
प्रेरणा बन मिलो !

तृप्ति दो नीर बन
प्रेम की छांह भी,
ठोकरें जब लगीं
थाम ली बांह भी !

था अबोध शिष्य जो
बोधवान बन गया,
पा परस गुरू का
पुष्प सा खिल गया !

दान दो ज्ञान का
नित यज्ञ कर रहे,
सत्य की सुवास शुभ
जगत में भर रहे !

कृतज्ञ है समाज यह
शिक्षकों का सदा,
रात-दिन व्यस्त जो
धो रहे अज्ञानता !

देवी वागेश्वरी
की कृपा बनी रहे,
गुरू और शिष्य की
डोर यह बंधी रहे !


मंगलवार, दिसंबर 3

आज विश्व विकलांग दिवस है



एक ज्योति स्नेह की

मृणाल ज्योति कुमुद नगर, दुलियाजान में स्थित एक ऐसी संस्था है, जहाँ हर किसी का स्वागत किया जाता है. जहाँ के विशेष बच्चे, जिन्हें देखकर पहले-पहल मन में पीड़ा जगती है, अपनी मुस्कान से अतिथियों का मन हल्का कर देते हैं, चाहे वे स्वयं छोटी-छोटी खुशियों से भी वंचित क्यों न हों. यह एक ऐसी संस्था है जिसका उद्देश्य बाधाग्रस्त बच्चों को, जो किसी न किसी कारण से स्वयं को अक्षम पाते हैं, इतना समर्थ बनाना है जिससे वे भी समाज में सम्मान पूर्वक जी सकें. शारीरिक, मानसिक, एन्द्रिक या बौद्धिक विकास में किसी प्रकार की कमी से ग्रस्त बच्चे विकलांगता की श्रेणी में आते हैं. ऐसे बच्चों के लिए विशेष स्कूल खोलने की आवश्यकता होती है क्योंकि उन तक ज्ञान व संदेश पहुँचाने की विधि भिन्न है. १९९९ में जब इस संस्था का जन्म हुआ, इस क्षेत्र में ऐसे विशेष बच्चों के लिए, जिन्हें खास देखभाल की जरूरत होती है, कोई स्कूल नहीं था. धीरे-धीरे इस संस्था का विस्तार हुआ और आज इस क्षेत्र की यह एक मात्र संस्था है जिसमें लगभग एक सौ चालीस बच्चों का दाखिला हुआ है, उनमें से कुछ जो दूर रहने के कारण तथा कुछ ज्यादा अस्वस्थ होने के कारण नियमित रूप से स्कूल नहीं आ पाते, उनके घर जाकर माता-पिता को इस बात से अवगत कराया जाता है कि वे अपने बच्चों को रोजमर्रा के कार्यों को करने में कैसे आत्मनिर्भर बनाएं. यहाँ ट्रेनिंग पाए हुए शिक्षक भी हैं और फिजियोथेरेपिस्ट द्वारा इलाज की सुविधा भी. ज्यादातर बच्चे गरीब तबकों से आते हैं, जिनकी विकलांगता का कारण कुपोषण भी हो सकता है और माँ का अस्वस्थ होना भी.
आज इस संस्था ने चौदह वर्ष पूर्ण कर लिए हैं, और शिक्षा, इलाज तथा पुनर्वास के लिए पूरे मनोयोग से काम कर रही है. दुलियाजान के आस-पास तथा दूर-दराज के गावों से भी लोग इस संस्था से जुड़े हैं, ताकि वे रोजगार दिलाने वाली शिक्षा द्वारा बेहतर जीवन जीने के अवसर पा सकें. यहाँ समय-समय पर मछली पालन, पौधों की नर्सरी बनाना, बत्तख पालन, सिलाई का काम, वेल्डिंग आदि सिखाया जाता है. हाथ से कलात्मक वस्तुएं बनाना, राखियाँ तथा दीये बनाना भी सिखाया जाता है. कुछ बच्चे जो यहाँ शिक्षा पा चुके हैं अपना निजी रोजगार खोल चुके हैं, कुछ दुकानों पर मैकेनिक का काम करते हैं.

यहाँ पैर से लिखने तथा चित्र बनाने वाले एक छात्र को तथा सुंदर नृत्य करते छात्र-छात्राओं को देखकर सहज ही मन में विचार उठता है कि विकलांगता अभिशाप नहीं है, यह एक चुनौती है. शारीरिक रूप से अक्षम होते हुए भी कई बच्चे मानसिक रूप स्वस्थ हैं, कुछ में सुनने की क्षमता न होते हुए भी सीखने का पूर्ण जज्बा है. यूँ देखा जाये तो जीवन में सबसे बड़ी कमी है ‘उत्साह की कमी’ जो अच्छे-भले इन्सान को निर्बल बना देती है. इन बच्चों का उत्साह देखते ही बनता है. वास्तविकता यह भी है कि इस दुनिया में कोई भी पूर्ण नहीं है. कोई न कोई कमी तो हरेक में होती ही है. इन्हें विकलांग न कहकर विशेष कहना ज्यादा उचित होगा जिन्हें कुछ विशेष सुविधाएँ चाहियें. मृणाल ज्योति जैसी संस्थाएं समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं, वे पीड़ित परिवारों के जीवन में आशा की किरण जगाती हैं, उन्हें एक ऐसे पथ का ज्ञान कराती हैं जो शक्ति, उत्साह तथा क्षमता से भरा है.