रविवार, अप्रैल 22

कुछ पल बगीचे में...


कुछ पल बगीचे में...

हवा सांय-सांय की आवाज लगाती
बहती जाती है
पेड़ों के झुरमुटों से
सुनहली धूप में चमक रहा होता है
जब घास का एक एक तिनका
किसी तितली के इंतजार में फूल
आँखें बिछाए तो नहीं
बैठा होता डाली के सिरे पर..

सूनी सड़क पर एकाएक
गुजर जाती है कोई साईकिल
और ठीक तभी दूर से
आवाज देती है गाड़ी
स्टेशन छोड़ दिया होगा किसी ट्रेन ने
हाथ हिल रहे होंगे, प्लेटफार्म और
ट्रेन के कूपों से बाहर हवा में
जाने किस किस के....  

आकाश नीला है
और श्वेत बगुलों से बादल
इधर-उधर डोल रहे हैं
एक पेड़ न जाने किस धुन में बढ़ता चला गया है
बादल की सफेद पृष्ठभूमि में
खिल रहा है उसका हरा रंग
जैस सफेद चादर पर हरे बूटे...

रह रह के हवा झूला जाती है झूला
जिस पर बैठ कर लिखी जा रही है कविता
परमात्मा इतना करीब है इस पल कि
नासिका में भर रही है उसकी खुशबू
और कानों में गूंज रही है बादलों की गड़गड़ाहट
धूप की तेजी को कम करती
रह-रह कर सहला जाती है
हवा की शीतलता
मैं हूँ यह है सौभाग्य मेरा
एक श्वेत तितली
कहती हुई गुजर जाती है सामने से..
हवा सांय-सांय की आवाज लगाती
बहती जाती है बगीचे में...




11 टिप्‍पणियां:

  1. हवा की शीतलता
    ‘मैं हूँ’ यह है सौभाग्य मेरा
    एक श्वेत तितली
    कहती हुई गुजर जाती है सामने से..
    हवा सांय-सांय की आवाज लगाती
    बहती जाती है बगीचे में...बहुत ही खुबसूरत
    और कोमल भावो की अभिवयक्ति......

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  2. अनुभूतियों को परवाज़ देती प्रकृति के साथ कदम ताल करती पोस्ट .बेहतरीन खूबसूरत एहसासों से मन को भरती चित्त शामक सी रचना .

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  3. बहुत खूबसूरत भाव समन्वय्।

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  4. यूं प्रकृति के सान्निध्य में ही परमात्मा का दर्शन होता है।

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  5. वाह..........................

    बहुत सुंदर प्रस्तुति..............
    मानों ठंडी हवा का झोंका......

    अनु

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  6. प्रकृति की मनमोहक छटा बिखेरती ये पोस्ट शानदार है।

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