शुक्रवार, जून 14

सुख उपहार जागरण का है

सुख उपहार जागरण का है



सुख की चादर के पीछे ही
छुपे हुए हैं कंटक दुःख के, 
लोभ किया आटे का जब-जब
फंस जाती मछली कांटे में !

स्वर्ग दिखाता, आस बंधाता
भरमाता जो अक्सर मन को
जब तक मन आतुर है सुख का
 छल जाता है दुःख जीवन को !

सुख तो ऊपर-ऊपर होता
 भीतर गहरे में इक दुःख है,
नाम इसी का जगत है जिसमें
सुख के नाम पे मिलता दुःख है !

कई रूप धर हमें लुभाता
बहुत मिलेगा सुख, कहता है,
एक बार जब फंस जाता मन
अहम् उसे चुप हो सहता है !

छोटी-छोटी भूलों पर भी
ना खुद को झुकने देता,
एक रेत का भवन खड़ा है
स्वयं ही कैसे गिरने देता !

कैसा माया जाल बिछा है
पीतल स्वर्ण का धोखा देता,
सुख उपहार जागरण का है
जो मंजिल पर ही जाकर होता !


15 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी कविता कविगुरु रविन्द्र नाथ की याद दिला दी.उन्होंने एक कविता में लिखा है कि जितना सुख के पीछे भागोगे उतना तुम्हारा दुःख बढता जायगा. यही भाव आपकी कविता में भी है -बहुत अच्छी है
    latest post: प्रेम- पहेली
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  2. लोभ पर हमें शर्म नहीं आती ..
    मंगल कामनाएं आपको !

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  3. आपने लिखा....हमने पढ़ा
    और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए आज 15/06/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    आप भी देख लीजिए एक नज़र ....
    धन्यवाद!

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  4. कैसा माया जाल बिछा है
    पीतल स्वर्ण का धोखा देता,
    सुख उपहार जागरण का है
    जो मंजिल पर ही जाकर होता !

    ...बिल्कुल सच कहा है...बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...

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  5. जीवन..ऐसा ही होता है...सुंदर लि‍खा आपने

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    उत्तर
    1. कैलाश जी व रश्मि जी, स्वागत तथा शुक्रिया..

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  6. वन्दना जी, बहुत बहुत आभार !

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  7. सुख पाने की आकांक्षा और उत्कंठा दुखों के रास्ते को कभी आसान भी बाना देती है.

    सुंदर भाव सुंदर अभिव्यक्ति.

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  8. नाम इसी का जगत है जिसमें
    सुख के नाम पे मिलता दुःख है !

    कितना सुन्दर लिखा है अनीता जी ....गहन अभिव्यक्ति है ....!!

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  9. जब तक मन आतुर है सुख का
    छल जाता है दुःख जीवन को !
    sundar rachna..

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  10. अर्थपूर्ण ..सुख उपहार है जागरण का...

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  11. रचना जी, अनुपमा जी, अमृता जी, अशोक जी व रजनीश जी आप सभी का स्वागत व आभार !

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