मंगलवार, जून 4

नये घर में

नये घर में


हरा-भरा विशाल बगीचा
बिछा है जिसमें कोमल घास का गलीचा
सलेटी आकाश से गिरता अमृत सा जल
भिगो रहा है कण-कण धरा का
बरामदे की छत पर घूमते पंखे की हवा में
झूमते गमलों के पात
बाहर भीगते हैं फूलों-पौधों के गात
नये घर में थी कल हमारी दूसरी रात
सामने है मेजेंटा बोगेनविलिया
बायीं ओर गुलमोहर
श्वेत पंखुड़ियों के मध्य पीली लिए
सुवासित फूलों का पेड़ दूर हेज को छूता हुआ
दायीं ओर ‘ब्लीडिंग हार्ट’ के रक्तिम आभा लिए श्वेत पुष्प
‘जीनिया’ की कतारें भी मुस्तैद खड़ी हैं
गुलाब की झाड़ी भी हँसने पर अड़ी है
पंचम सुर में आम पर कोयल है गाती
हरियाली ही हरियाली है दूर तक नजर आती
गेट पर खड़े हैं दोनों तरफ कंचन
मानो हर आगन्तुक का करते हों अभिनन्दन
सुर्ख लाल जवाकुसुम बाहर से नजर आता है
निकट खड़े दुसरे गुलमोहर को भी लजाता है
सडक पार रोज गार्डन के नजर आता है अमलतास
एक सुखद अनुभव है नये घर में निवास
शुरू हो गयी है सडकों पर वाहनों की आवाजाही
भ्रमण पथ पर नजर आ जाता है अक्सर कोई राही..

13 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. माहेश्वरी जी, अनुपमा जी, कालीपद जी आप सभी का स्वागत व आभार!

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  2. प्रकृति के इतने सुन्दर और खिलखिलाते परिवेश में स्थित घर अपने अंदर भी ऐसा ही नेह और आनन्द भरा संसार समेटे होगा - विश्वास है !

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    1. प्रतिभा जी, आपके मुंह में घी शक्कर...इतनी मीठी बात के लिए..घर के भीतर भी ध्यान और शांति की लहरें रहें ऐसी ही प्रार्थना से मन भरा है..

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  3. बहुत ही बढ़िया

    नया घर मुबारक हो आंटी।


    सादर

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