गुरुवार, अप्रैल 19

बहना भूल गया यमुना जल



बहना भूल गया यमुना जल


माधव, मुकुंद, मोहन, गिरधर
नाम-नाम में छुपे प्रीत स्वर,
प्रेम डोर में बाँध, विरह की
परिभाषा गढ़ डाली सुंदर !

युग बीते गूँजे वंशी धुन
ठहर गया है जैसे वह पल,
वन-उपवन भी चित्र लिखित से
बहना भूल गया यमुना जल !

अनुपम, अद्भुत एक अलोना
वैकुंठ से उतर विहंसता,
अंग-अंग से करुणा झरती
नयनों से जो जादू करता !

एक पुकार सुनी अंतर की
राधा ने निज मन दे डाला,
खग, मृग, गौएँ, तरु, तृण वन के  
झूमे, सँग डोले मतवाला !

पाँव धरे, पावन भयी भूमि
उस भूखंड झुकाते माथा,
शत सहस्त्र कंठों ने गायी
थके नहीं गा गाकर गाथा !


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