बुधवार, फ़रवरी 20

नभ झाँके जिस पावन पल में


नभ झाँके जिस पावन पल में



सुखद खुमारी अनजानी सी
‘मदहोशी’ जो होश जगाए,
सुमिरन की इक नदी बह रही
रग-रग तन की चले भिगाए !

नीले जल में मन दरिया के
पत्तों सी सिहरन कुछ गाती,
नभ झाँके जिस पावन पल में
छल-छल कल-कल लहर उठाती !

छू जाती है अंतर्मन को
लहर उठी जो छुए चाँदनी,
एक नजर भर देख शशी को
छुप जाती ज्यों पहन ओढ़नी !


5 टिप्‍पणियां:

  1. अंतर्मन को छूते भाव लहर के सहारे, चांदनी के सहारे, चाँद को, प्रिय को देख शर्माती रचना ... बहुर भावपूर्ण ....

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    1. स्वागत व आभार कविता को दिल से पढ़ने और भाव प्रकट करने के लिए !

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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