मंगलवार, अक्तूबर 8

एक पाती दुलियाजान के नाम



एक पाती दुलियाजान के नाम

बरसों पहले एक भीगी शाम  
काली धुली सड़क पर आहिस्ता से कदम रखे
तेल के कुँओं को गंध कहीं दूर थी
पर.. बादलों को गुलाबी करती
आग की लपटें दूर से दिखाई दे रही थीं
 देखा फिर झरता हुआ आसमान देर रात तक
गेस्टहाउस के कमरे की खिड़की से
हरियाली का एक विशाल समुन्दर था सामने
जब अगली सुबह गोल्फ कोर्स तक नजर गयी
उस दिन से आज तक...कोई भोर ऐसी नहीं हुई
जब इस तेल नगरी की सड़कों को
हमारे कदमों ने न नापा हो
फूलों से लदे पेड़ों को न सराहा हो
आकाश पर रंग बिखेरते बादलों को न निहारा हो
गन्धराज की सुवास हो
या शेफाली की मदमस्त करने वाली ख़ुशबू
अमलतास के फूलों की स्वर्णिम झालरें हों
या सुर्ख लाल गुलमोहर से लदे पेड़
बैंगनी अजार हों या गुलाबी कंचन..
कदम्ब की डालियाँ हों या सुंदर उपवन
दुलियाजान की हर बात निराली है
यहाँ की हवा में कोई जादू है शायद
या फिर इसकी फितरत ही मतवाली है
जालोनी क्लब के गलियारे और पुस्तकालय
ऑडीटोरियम या तरणताल..याद आते ही खुल जाता है
भीतर स्मृतियों का एक संसार विशाल
लेडीज क्लब की मीटिंग्स और संगीत के भव्य आयोजन
न जाने कितने कलाकारों के हुए जहाँ दर्शन
विदाई समारोहों में नम हुईं आँखें
जीवन के चौंतीस बरस जहाँ बीते
उस जमीन के जर्रे-जर्रे को सलाम है
यहाँ की हर गली हर कूचे को प्रणाम है !

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी दुलियाजान की स्मृत्यां महक रही हैं ... छंद-बद्ध कर के इन यादों को संजो लिया है आपने ... विजयदशमी की बहुत शुभकामनायें ...

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  2. आपको भी दशहरा पर्व पर हार्दिक शुभकामनायें !

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  3. वाह! बहुत सुंदर पंक्तियाँ।
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
    iwillrocknow.com

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