चुनाव हमारा है
कल हम हो जायेंगे विदा
और परसों
लोग हमें भूल जायेंगे
इस तरह
जैसे कि कभी था ही नहीं
अस्तित्त्व हमारा
इस दुनिया में
हमारे हाथ में है ‘आज’
चाहे तो गीत गुनगुना लें
या उस अहंकार को सजा लें
जो है ही नहीं।।
उसके कारण अपने पावों में
काँटों को चुभा लें
या दी है जिसने जिन्दगी की नेमत
उस रब को रिझा लें !
अंतर्मन को झकझोर कर उसे सोचने पर मजबूर कर देती सच्चाई एक दीया मन का जला ले अपनी कोशिश से तो फिर काहे का अँधियारा ।
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा है आपने प्रियंका जी, स्वागत व आभार !
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 29 मई 2025 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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बहुत बहुत आभार रवींद्र जी !
हटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंजो है नहीं
उसके लिए ,
जो है
उसे मत खोना ।
स्वागत व आभार नूपुरम जी !
हटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंसच कहा है अपने ... आज ही सब है ... कुछ सने के बाद सब भूल जाते अहिं ...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंबिल्कुल सच बात है!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
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