सरल और तरल
चीजें जैसी हैं, वैसी हैं
हम उन्हें खींच कर
बनाना चाहते हैं
जैसी हम उन्हें देखना चाहते हैं
यही खिंचाव तो तनाव है
तनाव भर देता है मन को
उलझन से
कर देता है जटिल
छा जाती है आत्मग्लानि व्यर्थ ही
चीजें जैसी हैं सुंदर हैं
मान लें यदि
कोई मापदंड न बनायें
कोई निर्णय न दें
पक्ष या विपक्ष में
स्वयं को सदा
सही सिद्ध करने की
ज़िद छोड़ दें
तो सारा तनाव घुल जाता है
मन सरल और तरल होता जाता है
और आत्मा
अपने सहज स्वरूप में
खिली रहती है !
अनायास ही सहज प्रेम
जो चारों ओर बिखरा है
हवा और धूप की तरह
प्रतिबिंबित होने लगता है भीतर से !
सदैव स्वतंत्र प्रेमरुप जो निर्बंध सतत सरल और तरल है ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार प्रियंका जी !
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जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 14 मई 2025को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत आभार पम्मी जी !
हटाएंएक सही बात की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंस्वयं को सदा
जवाब देंहटाएंसही सिद्ध करने की
ज़िद छोड़ दें
तो सारा तनाव घुल जाता है
मन सरल और तरल होता जाता है
वाह!! बहुत सुन्दर बात कही है इस रचना में ।बहुत सुन्दर सृजन । सादर नमस्कार अनीता जी !
स्वागत व आभार मीना जी !
हटाएंसही कहा है ... इंसान सब कुछ अपने अनुसार चाहता है और दुःख पाता है ...
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