सोमवार, मई 12

सरल और तरल

सरल और तरल 


चीजें जैसी हैं, वैसी हैं 

हम उन्हें खींच कर

 बनाना चाहते हैं 

जैसी हम उन्हें देखना चाहते हैं 

यही खिंचाव तो तनाव है 

तनाव भर देता है मन को

 उलझन से 

कर देता है जटिल 

छा जाती है आत्मग्लानि व्यर्थ ही 

चीजें जैसी हैं सुंदर हैं 

मान लें यदि

 कोई मापदंड न बनायें 

कोई निर्णय न दें 

पक्ष या विपक्ष में 

स्वयं को सदा 

सही सिद्ध करने की 

ज़िद छोड़ दें 

तो सारा तनाव घुल जाता है 

मन सरल और तरल होता जाता है 

और आत्मा 

अपने सहज स्वरूप में 

खिली रहती है !

अनायास ही सहज प्रेम  

जो चारों ओर बिखरा है 

हवा और धूप की तरह 

प्रतिबिंबित होने लगता है भीतर से !


9 टिप्‍पणियां:

  1. सदैव स्वतंत्र प्रेमरुप जो निर्बंध सतत सरल और तरल है ।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 14 मई 2025को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. एक सही बात की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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  4. स्वयं को सदा
    सही सिद्ध करने की
    ज़िद छोड़ दें
    तो सारा तनाव घुल जाता है
    मन सरल और तरल होता जाता है
    वाह!! बहुत सुन्दर बात कही है इस रचना में ।बहुत सुन्दर सृजन । सादर नमस्कार अनीता जी !

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  5. सही कहा है ... इंसान सब कुछ अपने अनुसार चाहता है और दुःख पाता है ...

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