ध्यान
जब हम बोलते हैं
भीतर या बाहर
तो दूसरा रहता है
जब चुप रहते हैं
तो कोई दूसरा नहीं होता
एक हो जाती है सारी कायनात
जब घटता है मौन
भीतर या बाहर
फिर जहाँ न राग रह जाता है न द्वेष
न सुख और न ही दुःख
जहाँ खुद से मिलना होता है
और मृत्यु का भय भी खो जाता है
उस मौन को पा लेना ही ध्यान है
यही स्रोत है जीवन का
शायद यहीं रहते भगवान हैं !
काश इस मौन की गहराई तक पहुंच पाएँ ।
जवाब देंहटाएंगहन अभिव्यक्ति
आमीन !
हटाएंमौन की इस अभिव्यक्ति को सुन पाना इतना आसान नहीं होता ... मौन ही रहना होता उसे सुन पाने के लिए भी ... सुन्दर भावपूर्ण रचना है ...
जवाब देंहटाएंसही कह रहे हैं आप, आभार !
हटाएंसुन्दर एवं भावपूर्ण अभिव्यक्ति!!
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार !
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (19-07-2021 ) को 'हैप्पी एंडिंग' (चर्चा अंक- 4130) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत बहुत आभार!
हटाएंध्यानं शरणं गच्छामि । अति सुन्दर भाव ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार अमृता जी !
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन...
जवाब देंहटाएंमौन की गहराई में पहुंचना भी दुर्गम है परन्तु जहां चाह वहां राह....उत्तम रचना।
जवाब देंहटाएंअनुराधा जी, संदीप जी व उर्मिला जी स्वागत व आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत ही गहरे भाव..सराहनीय सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर