एक चिंगारी असल की
दर्द भीतर सालता जो
प्रेम बनकर वह बहेगा,
भूल चुभती शूल बनकर
पंक से सरसिज खिलेगा !
खोल दो हृदय को अपने
जब साथ है रहबर खड़ा,
लक्ष्य अपना एक हो तो
विष यहाँ अमीय बनेगा !
परख लो हर बात अपनी
बनी हो चाहे बिगड़ती,
सत्य का दामन न छोड़ा
झूठ फिर कब तक टिकेगा !
सौ भ्रमों से ढका हो मन
ज़िंदगी आसान लगती,
एक चिंगारी असल की
खेल फिर कब तक टिकेगा !
हुआ सच से सामना जब
नहीं कोई ठौर मिलता,
नींद स्वप्नों से भरी हो
जागना इक दिन पड़ेगा !
सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (23-07-2021) को "इंद्र-धनुष जो स्वर्ग-सेतु-सा वृक्षों के शिखरों पर है" (चर्चा अंक- 4134) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद सहित।
"मीना भारद्वाज"
बहुत बहुत आभार मीना जी!
हटाएंखोल दो हृदय को अपने
जवाब देंहटाएंजब साथ है रहबर खड़ा,
लक्ष्य अपना एक हो तो
विष यहाँ अमीय बनेगा !
बिल्कुल जागना पड़ता एक दिन । बहुत सुंदर भाव से सुसज्जित रचना
सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर, बहुत खूब। सादर बधाई आपको।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआप सभी सुधीजनों का हृदय से स्वागत व आभार!
जवाब देंहटाएंमुग्ध करती रचना - -
जवाब देंहटाएंदर्द भीतर सालता जो
जवाब देंहटाएंप्रेम बनकर वह बहेगा,
भूल चुभती शूल बनकर
पंक से सरसिज खिलेगा !
बहुत सुंदर सृजन अनीता जी,सादर
बहुत मधुर सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर
परख लो हर बात अपनी
जवाब देंहटाएंबनी हो चाहे बिगड़ती,
सत्य का दामन न छोड़ा
झूठ फिर कब तक टिकेगा !
सुन्दर सृजन...
बहुत सुंदर सृजन।
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