गुरुवार, मार्च 3

हम अनंत तक को छू आते

हम अनंत तक को छू आते 

तन पिंजर में मन का पंछी  
पांच सीखचों में से ताके,
देह दीपक में ज्योति जिसकी 
दो नयनों से झिलमिल झाँके  ! 

पिंजर में सोना मढ़वाया 
पर पंछी प्यासा का प्यासा, 
 दीपक हीरे मोती वाला 
ज्योति पर छाया है धुआँ सा ! 

नीर प्रीत का सुख के दाने 
पाकर मन का पंछी चहके, 
पावन बाती, स्नेह ऊर्जा
ज्योति प्रज्ज्वलित होकर दहके !  

जग के सारे खेल-खिलौने 
पल दो पल का साथ निभाते, 
नेह ऊष्मा जब हो उर में 
हम अनंत तक को छू आते ! 

बाहर छोड़ें, भीतर मोड़ें
टुकड़ों में मन कभी न तोडें 
एक बार पा परम संपदा 
सारे जग से नाता जोड़ें ! 

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शुक्रवार 04 मार्च 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बाहर छोड़ें, भीतर मोड़ें
    टुकड़ों में मन कभी न तोडें
    एक बार पा परम संपदा
    सारे जग से नाता जोड़ें ! .. जीवन संदर्भ का सुंदर मनन और चिंतन 👏🏻👏🏻💐💐

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  3. तन की सजावट में मन मेला ये आज का समय है।
    मन सिर्फ स्नेह चाहे लेकिन जोर सारा तन पर।
    आपको पढ़ना हमेशा अच्छा लगता है।

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. नेह ही है जो आनंद प्रदान करता है । सुंदर ,भाव पूर्ण रचना ।

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  6. जिज्ञासा जी, रोहितास जी व संगीता जी आप सभी का स्वागत व हृदय से आभार!

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