सोमवार, अप्रैल 4

जो शून्य बना छाया जग में



जो शून्य बना छाया जग में 


जग जैसा है बस वैसा है 

निज मन को क्यों हम मलिन करें, 

जो पल-पल रूप बदलता हो 

उसे माया समझ नमन करें !

 

मन सौंप दिया जब प्रियतम को 

उन चरणों में ही झुका रहे,

फ़ुरसत है किसके पास यहाँ 

निज महिमा का ही हाथ गहें !

 

जो शून्य बना छाया जग में 

कण-कण में जिसकी आभा है, 

वह राम बना है कृष्ण वही 

उसका दामन ही थामा है !

 

जो जाग गया मन के भीतर 

वह  सिक्त सदा सुख सरिता में,

जग अपनी राह चला जाता 

वह ठहर गया इस ही पल में !


11 टिप्‍पणियां:

  1. जो जाग गया मन के भीतर

    वह सिक्त सदा सुख सरिता में,

    जग अपनी राह चला जाता

    वह ठहर गया इस ही पल में !
    बहुत सुंदर दर्शन!!!!

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  2. बहुत बहुत आभार शास्त्री जी !

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  3. बहुत सुन्दर !
    जो जाग गया मन के भीतर

    वह सिक्त सदा सुख सरिता में --

    बहुत गहरी बात !

    जवाब देंहटाएं
  4. जग जैसा है बस वैसा है
    निज मन को क्यों हम मलिन करें,
    जो पल-पल रूप बदलता हो
    उसे माया समझ नमन करें !
    अप्रतिम जीवन दर्शन । गहन सृजन ।

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  5. बहुत सुंदर सृजन। भवपूर्ण।

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