गुरुवार, अप्रैल 7

उर तोड़े हर बंधन

उर तोड़े हर बंधन

जीवन में छंद बहे 

मन में मकरंद गहें, 

रस धार झरे अविरत 

कान्हा यदुनंद कहें !

 

श्वासों में सुमिरन हो 

नयनों से हो वंदन, 

स्पंदित हों प्राण सदा 

उर तोड़े हर बंधन !

 

जो दिखता इक भ्रम है 

मिथ्या में क्या श्रम है, 

दुर्गम है सच का पथ 

मर कर मिटता क्रम है !

 

मरता भी कौन भला 

पहले ही जो मृत है, 

मिटकर भी शेष रहे 

निजता ही शाश्वत है !


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