बुधवार, अप्रैल 13

वह

वह

 

कभी भोर होकर भी 

भोर नहीं होती 

घटटोप बादलों से 

आवृत हो जाता है नील  नभ 

अंशुमान मेघों की अनेक परतों के पीछे 

पंछी देर तक दुबके रहते हैं कोटरों में 

रात भर बरस कर भी 

बदलियाँ थकी नहीं होतीं 

टप टप झरती हैं 

पेड़ों की डालियों से बूँदे रह रह कर 

मंदिरों के द्वार खुल जाते हैं 

पर भक्त गण नहीं आते 

ऐसे में यदि कोई 

परमात्मा को घर बैठे आवाज़ लगाए 

तो क्या उससे दूर रह पाएगा वह 

पल भर में पानी से भरे सारे रास्तों को पार करके 

प्रकट हो जाएगा न 

सम्मुख उसके  

पूछा मुन्नी ने दादी से !


12 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 14 अप्रैल 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. उत्तर
    1. वास्तव में दादी ने क्या कहा होगा यह तो नहीं मालूम, पर अनुमान लगाया जा सकता है, आपने भी लगा लिया होगा विभा जी, स्वागत व आभार!

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  3. मुन्नी, तू सवाल बहुत पूछती है.
    बड़ी हो कर जब तू अक्लमंद हो जाएगी तो फिर ऐसे मुश्किल सवालों से दादी को परेशान नहीं करेगी.

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    1. वाह! यह भी एक अनुमान हो सकता है!! स्वागत व आभार!

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  4. बहुत सुन्दर और चिन्तनपरक विचारों के साथ अभिनव एवं अनुपम सृजन ।

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  5. मीना जी, अमृता जी व गगन जी आप सभी का हृदय से स्वागत व आभार!

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