सोमवार, सितंबर 25

यह तू तो नहीं

यह तू तो नहीं


कहीं कुछ ऐसा नहीं 

जहाँ नज़र ठहर जाये 

दिल के मोतियों को लुटाता चल 

कि यह दामन भर जाये

हर सुकून भीतर ही मिला 

जब भी मिला 

बाहर फूलों के धोखे में 

काँटों से पाँव छिलवाये 

ख़ुद पे यक़ीन कर 

ख़ुदा में छिपा है ख़ुद 

वह यक़ीन ही छू सकता उसे 

 जर्रे-जर्रे में जो मुस्कुराए 

तू खुश है ही बेवजह 

जैसे दुनिया की वजह नहीं 

तलाश ख़ुशियों की 

बेमज़ा ज़िंदगी को बनाती जाये 

तेरे दामन में हज़ार 

ख्वाहिशें लिपटीं 

उतार फेंक इसे क्योंकि 

यह तू तो नहीं, बताती जाये ! 


10 टिप्‍पणियां:

  1. स्वयं की खोज जीवन यात्रा का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए ।
    सारगर्भित सृजन।
    सादर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार २६ सितंबर २०२३ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. हर सुकून भीतर ही मिला

    जब भी मिला

    बाहर फूलों के धोखे में

    काँटों से पाँव छिलवाये
    हल सकून बस भीतर
    वाह!!!!
    बहुत सार्थक एवं सटीक ।

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  3. हर सुकून भीतर ही मिला

    जब भी मिला

    बाहर फूलों के धोखे में

    काँटों से पाँव छिलवाये

    ख़ुद पे यक़ीन कर

    ख़ुदा में छिपा है ख़ुद
    .
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ.... वाह वाह वाह

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