मंगलवार, अप्रैल 29

जीवन का जो मोल न जानें



जीवन का जो मोल न जानें 



दुश्मन मित्र बने बैठे हैं 

बाहर वाले लाभ उठाते, 

लोभ, मोह से बिंधे यदि जन 

बाहर भी निमित्त बन जाते !


पहले ख़ुद को बलशाली कर 

घर भेदी का करें सफ़ाया, 

बाहर वाले तोड़ सकें ना

बने सुरक्षा का इक घेरा !


जीवन का जो मोल न जानें 

ऐसे असुरों से लड़ना है, 

अंधकार में भटक रहा हैं

दर्प भ्रमित मन का हरना है !


2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 30अप्रैल को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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