जीवन का जो मोल न जानें
दुश्मन मित्र बने बैठे हैं
बाहर वाले लाभ उठाते,
लोभ, मोह से बिंधे यदि जन
बाहर भी निमित्त बन जाते !
पहले ख़ुद को बलशाली कर
घर भेदी का करें सफ़ाया,
बाहर वाले तोड़ सकें ना
बने सुरक्षा का इक घेरा !
जीवन का जो मोल न जानें
ऐसे असुरों से लड़ना है,
अंधकार में भटक रहा हैं
दर्प भ्रमित मन का हरना है !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 30अप्रैल को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार पम्मी जी !
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