गुरुवार, मई 1

मिलन

मिलन 


जो ख़ुशबू बन साथ चला है 

उस से ही हर ख़्वाब पला है 


जीवन का जो सार दे रहा 

वही मधुर आधार दे रहा 


सीधा-सच्चा जिसका पथ है 

मिट जाती हर इक आपद है 


सारे शब्द दूर जा बैठे 

सुरति जहाँ दिल में आ पैठे 


गुंजन कोई गूँज रही है 

शुभ प्रकाश की नदी बही है 


 यामा-दिवस भेद मिटता है 

चारों याम मिलन घटता है 


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