सत्य और भ्रम
माना कदम-कदम पर बाधायें हैं
मोटी-मोटी रस्सियों से अवरुद्ध है पथ
आसक्ति के जालों में क़ैद
मन आदमी का
न जाने कितने भयों से है ग्रस्त
जो प्रकट हो जाते हैं स्वप्नों में
ज्ञान की तलवार से काटना होगा
रस्सी कितनी भी मोटी हो
एक भ्रम है
सत्य सूर्य सा चमक रहा है
समाधि के क्षणों में
उसे मन में उतारना होगा
हर भय से मुक्ति पाकर ?
नहीं, सत्य में जागकर
स्वयं को पाना होगा !
सत्य सदैव हमारे साथ ही है , जरुरत है बस ध्यान लगा उसे अनुभव करने की सबकुछ उजाले सा स्पष्ट सत्य हमारे नेत्रों के समक्ष ही है , बस अज्ञान से उत्पन्न भ्रमजाल को तोड़ना होगा और यह तभी संभव है , जब हमारा अन्तःकरण शुध्द निर्मल निष्कलंक बुरे विचारों और दुर्भावनाओं से मुक्त हो जोकि समस्त जगत की मंगलकामना में निहित है ।
जवाब देंहटाएं