शुक्रवार, अगस्त 22

नई मंज़िल का पता पा

नई मंज़िल का पता पा 


दूर हों अज्ञान से हम 

कामनाएँ मिट रहें, 

स्वयं में ही तृप्त हो मन  

 कोई अभाव न खले !


किसी क्षण में वह परम मिल 

उसी पथ पर ले चले, 

दूर होगी हर इक कलल 

संग उसके मन हँसे !


यज्ञ की ज्वाला उठेगी

मिलन का उत्सव मने, 

नई मंज़िल का पता पा  

ज्योति सा मन खिल उठे !



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