अंश
सुबह-सुबह जगाया उसने
कोमलता से,
छूकर मस्तक को,
जैसे माँ जगाती है
अनंत प्रेम भरे अपने भीतर
याद दिलाने, तुम कौन हो ?
उसी के एक अंश
उसके प्रिय और शक्ति से भरे
बन सकते हो, जो चाहो
रास्ता खुला है,
जिस पर चला जा सकता है
ऊपर से बहती शांति की धारा को
धारण करना है
जिसकी किरणें छू रही हैं
मन का पोर-पोर
अंतर के मंदिर में
अनसुने घंटनाद होते हैं
जलती है ज्योति
बिन बाती बिन तेल
हो तुम चेतन
इस तरह, कि अंश हो
उसी अनंत का !
जलती है ज्योति
जवाब देंहटाएंबिन बाती बिन तेल
हो तुम चेतन
इस तरह, कि अंश हो
उसी अनंत का ! - Wah!!