जीवन एक सुवास अनोखी
ह्रदय शुद्ध हो
भाव विमल हों
मन भी खाली-खाली अपना
जीवन जैसे कोई लीला
या फिर भोर काल का सपना !
चाह न जागे
लौ जब लागे
अंतर चरणों पर झुक जाये
जीवन जैसे गीत खुशी का
या कान्हा की बंसी गाये !
जो जैसा है
वैसा ही हो
मनस से हर द्वन्द्व मिट जाये
जीवन एक सुवास अनोखी
पल-पल अपना साथ निभाये !
भय कैसा अब
कैसी उलझन
चला रहा है वह जग सारा
जीवन इक उपहार अनोखा
नित्य नूतन राज खुल जाता !
कभी धूप है
कभी बदरिया
बदल रहा नित मौसम बाहर
जीवन इकरस पलता भीतर
बिछी हो ज्यों फूल की चादर !
शांति बरसती
कृपा बह रही
जिस पल द्वार ह्रदय का खुलता
जीवन जैसे मधुर पहेली
हौले-हौले अंतर खिलता !
.jpg)
सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंकान्हा बस तेरे रंग रंग जाए मन और ये गीत प्रेम का खुशी से गाये । जीवन सुवास सुरभि बिखेरती अंतर्मन को महकाती बहुत सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रतिक्रिया हेतु स्वागत व आभार प्रियंका जी!
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में गुरुवार, 23 अक्टूबर , 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार दिग्विजय जी!
हटाएंबेहतरीन रचना 🙏
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंबहुत सुन्दर ... कल्पना की उड़ान पढ़ते पढ़ते मन को निर्मल कर गई ...
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएं