अँधेरा और प्रकाश
अंधेरे में बदल जाती हैं चीजें
जो है
वह नहीं दिखायी देता
जो नहीं है
वह नयी शक्लें धर लेता है
अंधेरा भय जगाता है
अंधेरा बाहर का हो या भीतर का
परिणाम वही रहता है
देख सके जो पार अंधेरे के
ऐसी आँख जगानी है
प्रकाश की एक नन्ही सी किरण
उस पार से लानी है
कितना भी बड़ा हो अँधेरा
मिट जाएगा
शांति और मौन की तरह
छुपा प्रकाश बाहर आयेगा
तब ज्ञात होगा
जो है
वही तो प्रकट हो रहा है
भीतर अज्ञान है
तो मोह, क्रोध और भय की बेलें पनपेंगी
कभी शोक सताएगा
कभी घेर लेगा विषाद
भीतर ज्ञान है
तो आनंद की फसल लहलहायेगी !
किंतु जो मूल में है
अंततः वही बच जाता है
जो ओढ़ा हुआ है
वह एक न एक दिन
झर जाता है
ओढ़ा हुआ अज्ञान
भी उतर जाएगा
और उस दिन
जीवन पूरी तरह मुस्कुरायेगा !
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में शनिवार 08 नवंबर , 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका!
हटाएंअंधेरे के होने से ही प्रकाश का अस्तित्व है | सुंदर |
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंसार्थक संदेश लिए सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
हटाएंमैं भी मानता हूँ कि असली लड़ाई बाहर के अँधेरे से ज़्यादा भीतर के अँधेरे से होती है। जब मन उलझ जाता है, सब कुछ भारी लगने लगता है, और जो सच में है, वो भी धुंधला दिखता है। लेकिन जैसे ही ज़रा सा विश्वास, समझ या सुकून का स्पर्श मिलता है, वही अंदर का प्रकाश रास्ता दिखाने लगता है।
जवाब देंहटाएंसही कह रहे हैं आप, स्वागत व आभार!
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत व आभार!
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