सोमवार, अक्तूबर 11

कहानी एक दिन की

कहानी एक दिन की

दिनकर का हाथ बढ़ा
उजियारा दिवस चढ़ा
अंतर में हुलस उठी
दिल पर ज्यों फूल कढ़ा !

अपराह्न की बेला
किरणों का शुभ मेला
पढ़कर घर लौट रहे
बच्चों का है रेला !

सुरमई यह शाम है
तुम्हरे ही नाम है
अधरों पर गीत सजा
दूजा क्या काम है !

बिखरी है चाँदनी
गूंजे है रागिनी
पलकों में बीत रही
अद्भुत यह यामिनी !


अनिता निहालानी
११ अक्तूबर २०१०

2 टिप्‍पणियां:

  1. पलकों में बीत रही
    अद्भुत यह यामिनी !
    बहुत खूब ... प्रकृति को जीवंत कर दिया है.

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  2. वाह..!
    ..कितना मुश्किल है एक प्यारा गीत लिखना और कितना आसान है हंसते हुए उसे गुनगुना देना।

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