सोमवार, दिसंबर 9

तुम


तुम

मैंने जान लिया है कि
दीपक की लौ को तुमने
हाथों से ओट दी है
आँधियों की परवाह न करते हुए
मुझे उसमें तेल डालते रहना है !

हृदय को मुक्त रखना है भय से
क्योंकि एक अदृश्य घेरा
बनाया है तुमने चारों ओर !

भीतर बाहर मुझे एक सा होना है
 क्योंकि तुम कभी गहरे उतर जाते हो
तकने लगते हो आकर सम्मुख
कभी अचानक !

7 टिप्‍पणियां:

  1. भीतर बाहर मुझे एक सा होना है
    क्योंकि तुम कभी गहरे उतर जाते हो
    तकने लगते हो आकर सम्मुख
    कभी अचानक !

    सुन्दर अभिव्यक्ति...
    सच्ची और गहरी....

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  2. बहुत ही गहन भाव की सुंदर प्रस्तुति .....

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  3. गहन अनुभूति..मेरी नई पोस्ट 'आमा' में आप का स्वगत है..

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  4. ये जानना भी कितना सुखद है.. बस कभी भूल हावी न हो..

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  5. रविकर जी, रंजना जी, माहेश्वरी जी, अमृता जी, पूनम जी व इमरान आप सभी का स्वागत व आभार !

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