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सोमवार, दिसंबर 9

तुम


तुम

मैंने जान लिया है कि
दीपक की लौ को तुमने
हाथों से ओट दी है
आँधियों की परवाह न करते हुए
मुझे उसमें तेल डालते रहना है !

हृदय को मुक्त रखना है भय से
क्योंकि एक अदृश्य घेरा
बनाया है तुमने चारों ओर !

भीतर बाहर मुझे एक सा होना है
 क्योंकि तुम कभी गहरे उतर जाते हो
तकने लगते हो आकर सम्मुख
कभी अचानक !

शुक्रवार, फ़रवरी 3

भीतर जल ताजा है


भीतर जल ताजा है



माना कि जिंदगी संघर्ष है
कई खतरनाक मोड़ अचानक आते हैं
कभी इसको तो कभी उसको हम मनाते हैं
भीतर कहीं गहराई में जिंदगी बहती है
दू.....र टिमटिमाती गाँव की रोशनी की तरह....
ऊपर-ऊपर सब सूखा है, धुंध, धूल, हवा से ढका
आंधियों से घिरा
पर भीतर जल ताजा है
स्वच्छ, अदेखा, अस्पर्श्य, अछूता
माना कि अभी पहुँच नहीं वहाँ तक
उसकी ठंडक महसूस होती तो है 
शिराओं में...
उस धारा को बना कर नहर ऊपर लाना है
जो दिखता है दूर उसे निकटतम बनाना है !