गुरुवार, जनवरी 30

जीवन पग-पग पर मिलता है

जीवन पग-पग पर मिलता है 

नजर उठाकर जरा निहारें 
इंच भर ही राह संवारें,
आँचल में सुवास भर देता 
धीमे से बस उसे पुकारें !

किसी पुहुप में आ खिलता है 
जीवन पग-पग पर मिलता है !

शब्दों को नव अर्थ मिलेंगे 
चट्टानों के द्वार खुलेंगे, 
अनजाने रस्तों से आकर 
निर्मल निर्झर फूट पड़ेंगे !

नूतन पल्लव में हिलता है 
जीवन पग-पग पर मिलता है !

मुस्काने गह्वर में दबी थीं 
स्मृतियों की परतें ओढ़ी थीं,
परत दर परत खिसकती जाती 
व्यर्थ ही सीमाएं गढ़ ली थीं !

एक सूत्र घट-घट बसता है 
जीवन पग-पग पर मिलता है !

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