बुधवार, मई 27

लहरों से थपकी देता है

लहरों से थपकी देता है 


कोई सुख का सागर बनकर 
लहरों से थपकी देता है, 
हौले-हौले से नौका को 
मंजिल की झलकी देता है !

बरसे जाता दिवस रात्रि वह 
मेघा लेकिन नजर न आये, 
टप टप टिप टिप के मद्धिम स्वर 
मानो दूर कहीं गुंजाये !

कोई ओढ़ा देता कोमल 
प्रज्ज्वलित आभा का आवरण, 
सुमिरन अपना आप दिलाता 
पलकों में भर दे सुजागरण !

सूक्ष्म पवन से और गगन से 
नहीं पकड़ में समाता भाव, 
होकर भी ज्यों नहीं हुआ है 
हरे लेता है सभी अभाव !

जाने कैसी कला जानता
भावों से मन माटी भीगे, 
धड़कन उर की राग सुनाये 
भरे श्वास में सुरभि कहीं से !

10 टिप्‍पणियां:

  1. वाह !बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति आदरणीय दीदी.
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. भगवत्कृपा का साक्षात्कार कराती सुंदर रचना।

    जवाब देंहटाएं