गुरुवार, मई 28

शिशु भाव में कोई मानव

शिशु भाव में कोई मानव


नन्हा शिशु निःशंक हो जाता 
माँ के आँचल में आते ही ! 

जब से उसने आँखें खोलीं 
सम्मुख उसे खड़ा ही पाया,
साधन बनी मिलन का जग से
सब से परिचय था करवाया !

बालक यदि सदा शिशुभाव में 
माँ का आश्रय लेकर रहता, 
व्यर्थ अनेकों उपद्रवों से
खुद को सदा बचाये रखता !

किन्तु उसका यह अबोध मन 
माँ से भी विद्रोह करेगा, 
जिसने उसको जन्माया है 
उस जननी पर क्रोध करेगा !

जिसने सदा ही सुहित चाहा  
उसकी आज्ञा ठुकरायेगा, 
निश्च्छल निर्मल प्रेम को उसके 
समझ देर से ही पायेगा !

चाहे कितनी देर हुई हो 
माँ का दिल प्रतीक्षा करता,
परमात्मा का प्रेम वहीं तो 
सहज विशुद्ध रूप में बसता !

शिशु भाव में कोई मानव 
जब मन्दिर के द्वारे जाता 
सदा भवधरण की बाँहों का 
खुला निमंत्रण वह पा जाता !



10 टिप्‍पणियां:

  1. सच कहा आपने शिशु जैसा निश्चल और निस्वार्थ प्रेम सिर्फ परमात्मा ही कर सकता है।

    सादर

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    1. सही कहा आपने, परमात्मा ही ऐसा प्रेम देता है यदि मानव भी उसके पास शिशु भाव से जाता है !

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  2. अबोध शिशु की तरह निर्मल मन हो तभी परमात्मा मिल सकते हैं। बहुत सुंदर कविता।

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  3. स्वागत व आभार मीना जी !

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  4. कोमल भावसिक्त बहुत सुन्दर रचना

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