शनिवार, मई 2

शब्द-अर्थ

शब्द-अर्थ 

जहाँ शब्दों के अर्थ छाया की तरह 
उनके साथ डोलते रहते हैं 
अंतर के उस लोक में हमें  जाना होगा 
शब्दकोशों से जो भी अर्थ हम ढूंढेंगे 
वे चुराए हुए होंगे 
उन पर हमारा हक नहीं है 
‘प्रेम’ कहते ही यदि भीतर कहीं 
वसंत की अनुभूति न हो तो 
कोरा शब्द है यह, 
‘शांति’ के उच्चारण के साथ यदि 
मौन की अजस्र धाराएं मन को 
भिगोती हुई न चली आ रही हों 
तो बेमानी है यह शब्द 
हम शब्दों की  देहें लिए चलते हैं 
और मस्तिष्क को एक 
अजायबघर बना देते हैं 
अर्थ उनकी आत्मा है 
जिनसे वे जीवंत  हो जाते हैं 
तब उनके आलोक में हम घिर जाते हैं !

3 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा है शब्द से ओअरे उनके सही अर्थों में जाना और डूब जाना ही उसली आत्मा को पहचानना है ...
    प्रेम भी एक ऐसा ही शब्द है ...

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  2. स्वागत व आभार शास्त्री जी !

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