रविवार, मई 24

ईद मुबारक

ईद मुबारक 


लो फिर आ गयी ईद 
दिखा चांद... मुस्काया अंबर 
दिलों में मचलने लगे कितने ही मंजर 
उन हवाओं के झूले में झूलने लगा मन 
जो लिए आती थीं रमजान के बाद 
ईद मिलन की खुशबुएँ अपने साथ 
पहली अजान पर ही उठ जाना बिस्तर से 
सफेद झक्क कुर्ते में छोटे भाई का सुबह-सुबह सजना 
पकड़ कर उंगली भाईजान की, इबादत को निकल पड़ना 
लहंगों-शरारों को तह देकर अलमारी में सजाना 
वह गले मिलना और दुआ के लिए हाथ बढ़ाना 
वह ईदी देना छोटों को और बड़ों से पाना 
देकर जकात कुबूल करवाना खुदा से रोजा
‘ईद मुबारक’ कह कर हरेक से दुआएं बटोरना !
गाढ़े दूध से सेवइयां बनाकर मेवों से सजाना 
मीठी हो सबकी ईद यह अल्लाह से मनाना !

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