बुधवार, अगस्त 19

योग और प्रेम

योग और प्रेम 

 

जानने की इच्छा 

खुद को जानने की 

यदि जानने वाले की इच्छा बन जाये 

अर्थात ज्ञाता यदि स्वयं को जानने की इच्छा करे 

तो जो क्रिया करनी होगी उसे 

वही तो योग है !

 

जानने वाला यदि श्याम हो 

जानने की इच्छा राधा है 

जानने की क्रिया ही तो प्रेम है !

 

श्याम को इच्छा जगी स्वयं को देखे 

वह इच्छा ही राधा है 

वह देखना ही प्रेम है !

 

 शिव को इच्छा जगी सृष्टि करे 

वह इच्छा ही ‘शक्ति’ है 

राधा बने तो स्वयं को देखा 

शक्ति बने तो सृष्टि की 

सृष्टि की रचना भी प्रेम ही है !

 

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20.8.2020 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
    धन्यवाद
    दिलबागसिंह विर्क

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  2. बहुत सुंदर परिभाषा योग और प्रेम की!

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 20 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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