रविवार, अगस्त 23

महाभूत जो महादेव का

महाभूत जो महादेव का

 

कल-कल, छल-छल, सलिला का जल 

अविरल निर्मल  बहता रहता, 

जल जीवन को धारण करता 

भू को सिंचित करता बढ़ता !

 

दिनकर रश्मियों संग वाष्पित 

चंचल अनिल उड़ा ले जाता, 

जल धारा बना पुनः धरा पर 

नदियां नाले पोखर भरता !

 

बादल बन अम्बर में रहता 

पावन शीतल नीर बरसता,

पशु, पादप, कीट, विटज, मानव 

सर्व प्राण की तृषा बुझाता !

 

महाभूत जो महादेव का 

जल तत्व को सभी जन चाहें,

नहीं हो दूषित, व्यर्थ बहे न

जल के देव वरुण को ध्याएँ !

 

सरस बनाता, स्वाद जगाता 

अंगों को रखता कोमलतम, 

जल ना हो तो जल जाए जग  

जल है सत्यम शिवम सुंदरम !

 

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