शुक्रवार, अगस्त 21

इच्छा से शुभेच्छा तक

  

इच्छा से शुभेच्छा तक

 


वस्तुओं की इच्छा 

भरमाती है चेतना को, 

व्यक्तियों की, रुलाती है !

सुख की अभिलाषा सुला देती है 

जब समूह की चेतना से 

जुड़ जाती है इच्छा

कुछ भी करवा ले जाती है 

नहीं होता भीड़ के पास मस्तिष्क

एक उन्माद होता है 

मिट जाता है भय

जो कर नहीं सकता था एक

समूह करवा लेता है उससे 

विपरीत इसके

हो यदि इच्छा ज्ञान की 

आनंद व प्रेम की !

शुभ की इच्छा ...जगे भीतर 

वह परम से मिलाती है !

मुक्ति का स्वाद चखाती है 

निर्द्वन्द्व होकर गगन में 

चेतना को उड़ना सिखाती है 

शुभेच्छा ही देवी माँ है 

जो शिव की प्रिया है ! 

 


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