शनिवार, अक्तूबर 3

लुटा रहा वह धार प्रीत की


लुटा रहा वह धार प्रीत की 


 

जीवन के इस महाविटप पर 

दो खग युगों-युगों से बसते, 

एक अविचलित सदा प्रफ्फुलित 

दूजे के पर डोला करते !


लुटा रहा वह धार प्रीत की 

दूजा  फल कटु-मृदु खोज रहा, 

इक है निःशंक निज गरिमा में 

कब दूजे को निज बोध रहा !


उड़ जाता है वह दूर दूर 

संघर्षों का अनुयायी है, 

नव नीड़ रचे ढूंढ प्रियजन 

अकुलाहट हिस्से आयी है !


फिर इक दिन तो ऐसा होगा 

बल कोई न पाँखों में रहा, 

नजरें फिर मोड़ उसे देखे 

जो सदा प्रतीक्षित था तकता !


वह घड़ी अनूठी ही होगी 

जब मिलन सुहृद से घट जाये, 

विमल असीम स्नेह से पूरित 

दो पंछी एक हुए गायें !




12 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 5 अक्टूबर 2020) को 'हवा बहे तो महक साथ चले' (चर्चा अंक - 3845) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  2. वाह!बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति ।

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  3. उड़ जाता है वह दूर दूर
    संघर्षों का अनुयायी है,
    नव नीड़ रचे ढूंढ प्रियजन
    अकुलाहट हिस्से आयी है !

    सामयिक सार्थक भावाभिव्यक्ति

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