शुक्रवार, अक्तूबर 9

ज्ञान और ज्ञाता

 ज्ञान और ज्ञाता

जो किताबें आज सजी हैं 

पुस्तकालयों की आलमारियों में 

वे कभी रहा करती थीं 

मानव मस्तिष्क में 

जब तक प्रकटी नहीं 

तब भी थीं अस्तित्त्व के गर्भ में 

विद्या माया ने रचाया है सारा आयोजन 

कलाओं, संस्कृतियों का करने संवर्धन 

अनंत ज्ञान छिपा है उसके कोष में 

किन्तु ज्ञाता फिर भी अदृश्य बना रहता है 

शब्द शक्ति है विद्या रूपी 

जानने वाले इसे प्रकट करते हैं 

और स्वयं उसी विराट में मिल जाते है 

कालिदास के शब्द हमें मिलते हैं  

वह स्वयं कहीं विलीन हो गया !


2 टिप्‍पणियां: