गुरुवार, दिसंबर 3

ऊँघता मधुमास भीतर

ऊँघता मधुमास भीतर 

अनसुनी कब तक करोगे 

टेर वह दिन-रात देता,

ऊँघता मधुमास भीतर 

कब खिलेगा बाट तकता !


विकट पाहन कन्दरा में 

सरिता सुखद इक बह रही, 

तोड़ सारे बाँध झूठे 

राह देनी है उसे भी !


एक है कैलाश अनुपम 

प्रकृति पावन स्रोत भी है,  

कुम्भ एक अमृत सरीखा 

क्षीर सागर भी वहीं है !


दृष्टि निर्मल सूक्ष्म जिसकी  

राह में कोई न आये, 

बेध हर बाधा मिलन की 

सत्य में टिकना सिखाये !

 

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