गुरुवार, मार्च 11

होगा ही कोई हाथ

होगा ही कोई हाथ


सूर्य नहीं कहता वह सूर्य है 

उसकी किरणें ही बताती हैं 

चाँद अपना नाम नहीं लिखता आसमान पर 

चाँदनी बयान करती है उसका हाल 

परमात्मा फिर क्यों कहे वह भगवान है 

हवाएं देती हैं उसका पैगाम 

दिल में उमड़ता हुआ प्रेम 

ही खबर देता है 

उसके होने की 

ऐसे ही अज्ञान नहीं लेता अपना नाम खुद 

क्रोध और ईर्ष्या की आग ही बताती है 

अभी ज्ञान सोया है मन में 

जगत है तो जगतपति की खबर मिल ही जाती है 

जैसे नौका तैरती आती हो दूर से सागर में 

तो नाविक होगा ही 

उड़ती हो आकाश में कोई पतंग 

तो होगा ही कोई हाथ 

थामे हुए डोर को 

फिर क्यों नहीं देख पाते हम उसे 

जो छुपा है जर्रे-जर्रे में !

देवत्व महान स्वतंत्रता है 

नहीं है उसे कोई बंधन 

हजार-हजार रूपों में प्रकट होता है 

वह संकल्प मात्र से 

धैर्य, सहिष्णुता और प्रेम की मूरत 

वह सिखाता है मानव को सच की राह 

दिखाता है सदा 

दिलों में अपनेपन की भावना जगाकर 

समाज को एक उद्देश्य में बांधता है 

पतित को पावन बनाता है 

अपवित्र और पवित्र के भेद को बताने वाला 

संबंधों के जाल से निकाल 

पंछी को उन्मुक्त आकाश में

उड़ने की शक्ति भरने वाला

अनंत  हर घड़ी निमंत्रण देता है

वह सर्व समर्थ शक्ति का स्वामी है !


 

11 टिप्‍पणियां:

  1. बस अपनी अपनी आस्था है .कोई शक्ति जिसे हम ईश्वर मानते हैं .

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    1. आस्था के बिना जीवन अधूरा है, स्वागत व आभार संगीता जी !

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  2. बहुत सुन्दर रचना।
    --
    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  3. बहुत सुंदर भाव एक सुंदर रचना आप को महाशिवरात्रि पर्व की परिवार सहित हार्दिक शुभकामनाएं

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  4. अध्यात्म की गहनता में डूबी हुई सुन्दर साहित्यिक रचना - - साधुवाद सह।

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  5. आध्यात्म भाव से ओतप्रोत बहुत ही सुंदर सृजन,सादर नमन आपको

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  6. आप सभी सुधीजनों का स्वागत व आभार!

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  7. बहुत सुंदर अध्यात्म में पगी रचना।
    सादर

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  8. अध्यात्म और जीवन दर्शन से ओतप्रोत सुंदर रचना..

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