मंगलवार, अक्तूबर 19

इतिहास बार-बार दोहराता है स्वयं को

इतिहास बार-बार दोहराता है स्वयं को 

मंदिर तोड़े जा रहे हैं 

खंडित हो रही हैं मूर्तियाँ 

धर्म के नाम पर अत्याचार और हैवानियत का 

एक बार फिर प्रदर्शन है 

जाने यह कैसा विचित्र दर्शन है 

जिसमें दूरियाँ पाटी नहीं जा सकीं 

शताब्दियों में भी 

एक अंधी मानसिकता पनप रही है 

जो असहिष्णु तो है ही 

मान लिया लिया है जिसने स्वयं को श्रेष्ठ 

जो धर्म आदमी में ख़ुदा नहीं देख पाता 

वह कैसे राह दिखाएगा 

अबोध भेड़ों की तरह जिधर चाहे कोई भी

 हांकता हुआ ले जाता है 

जियो और जीने दो का मंत्र नहीं आता जिसे

 देखें, वह कब तक स्वयं को बचा पाता है !


10 टिप्‍पणियां:

  1. जो धर्म आदमी में ख़ुदा नहीं देख पाता
    वह कैसे राह दिखाएगा
    अबोध भेड़ों की तरह जिधर चाहे कोई भी
    हांकता हुआ ले जाता है
    चेतावनी देती रचना
    आभार
    सादर

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    उत्तर
    1. स्वागत व आभार यशोदा जी, वाक़ई अब जागने का वक्त है

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  2. धर्म के नाम पर अत्याचार और हैवानियत का
    एक बार फिर प्रदर्शन है
    जब-जब धर्म के नाम पर लड़ाई होती है तब तब इंसानियत की हत्या होती है!
    एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का सिर्फ इसलिए हत्या कर देता है कि वह किसी अन्य धर्म का है ऐसा कौन सा धर्म होगा जिसमें यह सिखाया जाता है कि एक व्यक्ति दूसरे धर्म के व्यक्ति की हत्या करना या फिर दूसरे धर्म के पूज्य स्थानों को तोड़ना अपने धर्म का सम्मान है!
    पता नहीं कौन से लोग होते हैं जो धर्म के नाम पर अधर्म करते हैं! किस धर्म ग्रंथ में लिखा होगा कि एक धर्म का व्यक्ति दूसरे धर्म के व्यक्ति का सम्मान नहीं कर सकता या फिर किसी एक धर्म के होने ने पर दूसरे धर्म के देवी-देवताओं का सम्मान करना अपने धर्म का अपमान करना है, मुझे नहीं लगता कि ऐसा किसी भी धर्म ग्रंथ में लिखा होगा! और अगर ऐसा किसी धर्म ग्रंथ में लिखा हो तो ऐसी धर्मग्रंथ को जलाकर राख कर देना चाहिए!
    जो लोग धर्म के नाम पर अधर्म करते हैं वे लोग ना गीता पढ़े होते हैं ना ही कुरान पढ़े होते हैं और ना ही कोई अन्य धर्म ग्रंथ!यह लोग इंसानियत के दुश्मन होते हैं😡😡😡

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    1. सही कहा है आपने, धर्म ग्रंथों में कुछ बातें उस वक्त के लिए लिखी गयी होती हैं न कि सदा के लिए, उन्हें वक्त के साथ बदल कर नए युग के अनुरूप परिभाषित करना होता है, पर कुछ धर्म वहीं रुके रह जाते हैं जो सारे विश्व के लिए ख़तरा बन जाते हैं

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  3. बहुत ही गूढ़ और चिंतनपूर्ण रचना ।

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  4. मन की पीड़ा और आक्रोश को अभिव्यक्त करती सशक्त रचना ।
    आखिर कब तक चलेगा यह सब , कोई तो समाधान खोजना होगा ।

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  5. बहुत सटीक एवं समसामयिक...
    मान लिया लिया है जिसने स्वयं को श्रेष्ठ

    जो धर्म आदमी में ख़ुदा नहीं देख पाता

    वह कैसे राह दिखाएगा

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  6. जिज्ञासा जी, ज्योति जी व सुधा जी, आप सभी का आभार, वाक़ई अब समाधान खोजना ही होगा, कम से कम अन्याय के विरुद्ध आवाज़ तो उठानी होगी

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