मंगलवार, जनवरी 11

हो तुम जन्मों के चिर-परिचित



हो तुम जन्मों के चिर-परिचित



तुमसे मिलकर मिटी दूरियाँ

हो गए अपने सब पराये,

अनजाने जाने से लगते

परिचय तुमने दिये कराए !


हो तुम जन्मों के चिर-परिचित

जीवन में तुम ! तुम्हीं मरण में,

दूरस्थ निकट तुम ला देते

खुद प्रतिपल साथ रहे मेरे !


पंछी, बादल, पुष्प रंगीले

है रंग भरा यह जग भाता, 

रंग हमें आनन्दित करते 

जल में सूर्य रंग बरसाता !


शिशु-बालक हो मुग्ध खेलते  

निरख-निरख तुम हर्षित होते !

विमल लहर सुर स्वर बिखराती

सर-सर-सर वट गीत सुनाते,


पत्ते वन-वन डोला करते

जैसे लोरी शिशु हों सुनते 

हवा सिहरती क्या कुछ कहती 

नयन मुँदे से रहें ऊनींदे  !


( गीतांजलि से प्रेरित पंक्तियाँ )


2 टिप्‍पणियां:

  1. संप्रेषित भाव को आत्मसात करते हुए बस आनंद की अनुभूति होती है । अति सुन्दर कृति ।

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